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धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति

असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

इतना जाग जाना है भीतर--कि भीतर एक कोना भी न रह जाए अनजाना, अपरिचित।

भीतर एक अंधेरे का कण भी न रह जाए, इतना जाग जाना है कि सब हो जाए आलोकित, सब भीतर प्रकाश से भर जाए, होश से भर जाए। एक-एक कोना मेरे चित्त का मुझसे परिचित हो जाए। जिस दिन टोटल माइंड, जिस दिन पूरा चित्त जान लिया जाता है—सिर्फ कांशस माइंड नहीं, टोटल, सिर्फ चेतन मन नहीं, अचेतन भी। वह जो छिपा है अनकांशस, वह भी। जिस दिन पूरा मन जान लिया जाता है, उस दिन जीवन के सारे रहस्यों के द्वार खुल जाते हैं। पूरे मन के प्रति जाग जाना है। और जान लिया जाना पूरे मन का, ध्यान है।

तो ध्यान तो सोने की तरकीब नहीं है, जागने की तरकीब है। और एकाग्रता, और नाम-जप इत्यादि सोने की तरकीबें हैं, जागने की नहीं। इसलिए जिन कौमों ने इस तरह की सोने की विधियों का उपयोग किया, उनके पूरे प्राण धीरे-धीरे सुस्त होकर सो गए। उनके जीवन में जागरण की प्रफुल्लता, जागरण की ऊर्जा और शक्ति दिखाई पड़नी बंद हो गई। वे सो गए। उनके जीवन में क्रांति और परिवर्तन विलीन हो गया। क्योंकि क्रांति और परिवर्तन होता है उसके जीवन में, जो जागा हुआ है। जो सोया हुआ है, वह क्या क्रांति और परिवर्तन करेगा।

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