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धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति

असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

निमंत्रण दे दिया गया। स्वर्ग का निमंत्रण था। ऋषि-मुनि भी इनकार न कर सके। क्योंकि ऋषि-मुनि सारी कोशिश ही स्वर्ग पहुँचने की करते हैं और कोशिश ही क्या है? निमंत्रण पाकर बहुत प्रसन्न हुए। बड़ा सम्मान था यह। इंद्र का जन्मदिन था और उन तीन को ही बुलाया गया था। और उनके जितने कांपटीटर ऋषि-मुनि थे, वे नहीं बुलाए गए थे, इससे बड़ी प्रसन्नता थी। वे काफी खुश हुए। वे गए। सब तरह से सज-धजकर गए। ऋषि-मुनियों की भी अपनी सज-धज होती है। आप पहचान नहीं पाते, यह दूसरी बात है, क्योंकि आपकी सज-धज दूसरे तरह की होती है। तरह का फर्क होता है, सज-धज में कोई भेद नहीं होता। वे परिपूर्ण तैयारी से, पूरे ऋषि- मुनि बनकर वहाँ उपस्थित हो गए। उर्वशी भी उस दिन तैयार हुई थी। और जितनी उन दिनों प्रसाधन की, जितनी भी सुंदर होने की--जितने भी एक्सपर्ट होंगे स्वर्ग में, जितने विशेषज्ञ थे, सबने मेहनत की थी। उर्वशी इतनी सुंदर दिखाई पड़ी कि खुद इंद्र मुश्किल में पड़ गया। उसे कल्पना न थी कि उर्वशी इतनी सुंदर हो सकती है।

उर्वशी का नृत्य शुरू हुआ। घंटेभर में ही, मंत्रमुग्ध वे सारे लोग देखते रह गए। कभी परिचित न थे इतने सुंदर नृत्य से, इतने मनो-मुग्धकारी। फिर उर्वशी ने, जब रात गहरी हो गई, तो अपने आभूषण निकालकर फेंक दिए। आभूषण शरीर को सुंदर करते हैं। लेकिन आभूषण-रहित शरीर का भी अपना एक और ही सौंदर्य है। आभूषण सुंदर भी करते हैं, लेकिन शरीर को बहुत जगह छिपा भी लेते हैं। आभूषण फेंककर उसने वस्त्र भी फेंकने शुरू कर दिए।

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