लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति

असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

434 पाठक हैं

माथेराम में दिये गये प्रवचन

लेकिन सृजन के बहुत तल हैं, बहुत ग्रेड्स हैं। सृजन के बहुत रूप हैं, बहुत ऊंचाइयां हैं। सृजन की बहुत गहराइयां हैं। लेकिन वे सब गहराइयां, सब ऊंचाइयां सेक्स की ऊर्जा से ही जन्म पाती हैं, वहीं उनका केंद्र है। उसके प्रति विरोध से नहीं--उसके प्रति समझ, प्रेम, आनंद और सम्मान से आदमी नीचे से ऊपर की तरफ विकसित होता चला जाता है--तब वह बच्चे ही पैदा नहीं करता, कुछ और भी पैदा करता है। तब वह पार्थिव ही पैदा नहीं करता, कुछ अपार्थिव को भी जमीन पर उतार लाता है। तब उसकी चेष्टाएं कुछ अलौकिक, कुछ अपार्थिव जीवन, कुछ अपार्थिव शक्तियों को भी जमीन पर आमंत्रित कर लेती हैं, वह एक सृष्टा बन जाता है।

इसलिए इसे सोचें, इसे खोजें। हजारों साल ने जो कहा है, वही जरूरी रूप से सही न मान लें। वह सही नहीं है। उस पर पुनर्विचार, उस पर री-कंसीडरेशन होना आवश्यक है। कम से कम सेक्स के बाबत तो हमारी सारी दृष्टि नई हो जानी चाहिए। वही हमारा महारोग हमें पीड़ित किए हुए है, उससे हमारा छुटकारा अत्यत आवश्यक है।

एक और छोटा सा प्रश्न और फिर हम उठेंगे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book