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असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

क्रांति का क्षण

मेरे प्रिय आत्मन्,

एक बहुत पुरानी कथा है। किसी पहाड़ की दुर्गम चोटियों में बसा हुआ एक छोटा सा गांव था। उस गांव का कोई संबंध, वृहत्तर मनुष्य जाति से नहीं था। उस गांव के लोगों को प्रकाश कैसे पैदा होता है, इसकी कोई खबर न थी।

लेकिन अंधकार दुःखपूर्ण है, अंधकार भयपूर्ण है, अंधकार अप्रीतिकर है, इसका उस गांव के लोगों को भी बोध होता था। उस गांव के लोगों ने अंधकार को दूर करने की बहुत चेष्टा की। इतनी चेष्टा की कि वे अंधकार को दूर करने के प्रयास में करीब-करीब समाप्त ही हो गए। वे रात को टोकरियों में भरकर अंधकार को घाटियों में फेंक आते। लेकिन पाते कि टोकरियां भरकर फेंक भी आए हैं, फिर भी अंधकार अपनी ही जगह बना रहता है।

उन्होंने बहुत उपाय किए। वह पूरा गांव पागल हो गया अंधकार को दूर करने के उपायों में। अंधकार को धक्के देने की कोशिश करते, तलवारों, लाठियों से अंधकार को धमकाते। लेकिन अंधकार न उनकी सुनता, न उनसे हटता, न उनसे मिटता। और अंधकार को मिटाने की कोशिश में और बार-बार हार जाने के कारण वे इतने दीन-हीन, इतने दुखी, इतने पीड़ित हो गए कि उन्हें जीवन में कोई रस, जीवन में कोई आनंद फिर दिखाई नहीं पड़ता था। एक ही बात दिखाई पड़ती थी कि शत्रु की तरह अंधकार खड़ा है और उस पर वे विजय पाने में असफल हैं। आखिर वह गांव अंधकार को दूर करने की कोशिश में पागल हो गया।

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