लोगों की राय

उपन्यास >> अवतरण

अवतरण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :590
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9552

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

137 पाठक हैं

हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।


‘‘आचार्यजी पहले तो माने नहीं। परन्तु पीछे उन्होंने कह दिया कि यदि कोई युवक उसको अपना यौवन उधार दे दे तो कुछ काल के लिए यह सम्भव हो सकता है।’’

‘‘अब ययाति अपने लिए यौवन की भिक्षा माँगने लगा। कोई भी युवा-पुरुष उसको यौवन देने के लिए तैयार नहीं होता था। बहुत मिन्नत और प्रतीक्षा करने पर शर्मिष्ठा के पुत्र पुरु ने अपना यौवन अपने पिता को दे दिया।’’

मैंने माणिकलाल को बीच में ही टोकते हुए पूछा, ‘‘भला यह कैसे हो सकता है?’’

माणिकलाल ने कहा, ‘‘यह तो कुछ अधिक कठिन नहीं। शुक्राचार्य संजीवनी विद्या जानता था। इसी प्रकार उसका किसी वृद्ध पुरुष को युवा करने की विद्या जानना भी कोई विस्मयजनक बात नहीं। ऐसा प्रतीत होता है कि शुक्राचार्य के इतना कहने से कि कोई युवा पुरुष अपना यौवन उसको दे सकता है, यह अभिप्राय होगा कि किसी युवक के अण्डकोष उतार कर वृद्ध ययाति के लगाये जा सकते हैं। आज कल भी तो वानरों की ग्रन्थियों मनुष्यों को लगाकर उनको यौवन देने का यत्न किया जा रहा है।

‘‘यह विज्ञान की बात आजकल के पढ़े-लिखे लोगों को आश्चर्यकारक इस कारण प्रतीत होती है कि उनके मस्तिष्क में वह बात डाल दी गई है कि दो अरब वर्ष से बनी पृथ्वी पर मनुष्य-सृष्टि तो केवल पाँच हज़ार वर्ष से ही हुई है और विज्ञान में उन्नति वर्तमान काल में ही हो रही है; पाँच सहस्त्र वर्ष पर पृथ्वी पर बसने वाले आज की अपेक्षा मूर्ख और गँवार थे।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book