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उपन्यास >> फ्लर्ट

फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

लग रहा था कि बहुत कुछ बाकी है उसमें अभी भी लेकिन- ‘अगर अब भी तुमको लगता है कि मुझे तुम्हारे साथ नहीं रहना चाहिये तो ठीक है मैं आज के बाद तुमसे ये बात कहूँगी भी नहीं।’ यामिनी ने सिर झुका कर अपनी बात कह दी और चली गयी।

मैं दहलीज के बीचों बीच खड़ा था। कुछ देर को मैं समझ ही नहीं पाया कि अपने कदम पीछे लूँ या आगे?

यामिनी के आँसू अपने प्यार को साबित कर चुके थे। वो अपने दिल से हार चुकी थी और उसने मुझे भी हरा दिया।

इससे पहले भी यामिनी मुझसे ये सवाल कर चुकी थी और जितनी बार भी मैंने उसे मना किया था उतनी ही बार मुझे भी चोट लगी थी। मैं उसे भी तकलीफ दे रहा था और खुद को भी। उसे भूलने की कोशिशें ही मुझे तोड़कर रख देतीं थी। इस बार उसे मना नहीं कर पाया और वही किया जिसमें हमारी खुशी थी। फिर जैसा कि यामिनी ने चाहा था, वो कुछ वक्त के लिए मेरे ही फ्लैट में शिफ्ट हो गयी। मैं भी जितनी खुशियाँ हाथ आयी, उन्हें ही समेटने लगा।

यामिनी मेरे फ्लैट में शिफ्ट हो गयी। मेरी दम तोड़ती उम्मीदें फिर से साँस लेने लगीं। उसने मुझे फिर एक उम्मीद दे दी थी कि अगर वो कुछ महीनों के लिए मेरी जिन्दगी में आ सकती है तो फिर हमेशा के लिए भी आ सकती है। अगर वो सच में मुझे प्यार करती है तो दोबारा मुझे चोट नहीं पहुँचायेगी। मुझे यकीन था लेकिन उसका फैसला बिल्कुल अनिश्चित था... जैसे आने वाला कल होता है।

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