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उपन्यास >> फ्लर्ट

फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

53


जब मेरे और यामिनी के बीच सब कुछ दम तोड़ने वाला था तब इस घटना ने एक बार फिर चिंगारियों को हवा देकर साबित कर दिया कि अब तक उसके अन्दर कोई एहसास साँसें ले रहा है कि उसे अब तक मेरी परवाह है। उसने अगले ही दिन मुझे कॉल किया, समझाया कि मैं ये सब ना करूँ।

मेरी तरफ से अध्याय बन्द हो चुका था लेकिन जल्द ही मुझे फिर वही पन्ने पलटने पडे क्योंकि चौथे दिन ही मुझे संजय ने खबर दी कि उसकी डील फाईनल हो गयी है और जिसे मेरी जगह भेजा जा रहा था वो खुद यामिनी थी। पहले लगा कि संजय कोई चाल चल रहा है लेकिन बाद में पता चला कि खुद यामिनी ने पहल की थी। वजह मैं कभी नहीं जान पाया लेकिन कहीं ना कहीं मैं ही था।

मैं जानता था कि संजय ने यामिनी को भेजना नहीं है, वो बस मुझसे हाँ करवाने के लिए ये सब कर रहा था। मैंने यामिनी को हर तरह से समझाया कि वो अगर मेरे चलते जा रही है तो ना जाये लेकिन वो नहीं मानी। उसने बात खत्म करने के लिए ये तक कह दिया कि वो मेरे लिए नहीं बल्कि पैसों के लिए वहाँ जा रही है और इसके बाद वो मुम्बई छोड़ देगी। अब इतना सुनने के बाद मेरे पास उसे कहने के लिए कुछ नहीं बचा था।

उसे रोकने का अब बस एक ही तरीका था मेरे पास।

जिस दिन मैं संजय के केबिन में ये कान्ट्रेक्ट साईन कर रहा था उस दिन मुझे एक बार फिर सोचने को कहा। मेरा कोई जवाब नहीं था और ना ही मेरे हाथ रुके। मैं बस किसी भी हाल में यामिनी को इस मुसीबत से दूर रखना चाहता था।

संजय अपनी मेज पर आगे की तरफ झुका, चुपचाप मेरे हाथों को देख रहा था। जैसे ही मैंने आखिरी पेपर साईन किया-

‘ये आखिर हो क्या रहा है यहाँ?’ वो बडबड़ाया। मैंने आँखें ऊपर कर के उसकी तरफ देखा।

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