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उपन्यास >> फ्लर्ट

फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

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मैंने एक बार फिर दिवारघड़ी की तरफ देखा। करीब एक घन्टा बीत चुका है। संजय को यहाँ 20-22 मिनट में पहुँच जाना चाहिये था लेकिन उसे ना जाने क्यों वक्त लग रहा था?

सहार पुलिस स्टेशन में एक पुरानी लकड़ी की बेंच पर बैठे हुए मैं इन्सपैक्टर हान्डेकर के सवालों के जवाब दे रहा था। संजय हमारी वकील के साथ कभी भी यहाँ पहुँचने वाला था लेकिन तब तक मुझे इन्सपैक्टर की बकवास झेलनी ही झेलनी थी....और वजह थी?

मेरी किसी बेवकूफ गर्लफ्रेन्ड ने पिछली रात अपनी जान देने की कोशिश की। बदकिस्मती से वो बच गयी और होश में आने पर उसने अपने बयान में मेरा नाम भी शामिल कर लिया। इतना काफी था मेरी जवाबदारी बनाने के लिए!

मैं एक ही जवाब बार-बार देकर थक चुका था।

‘यकीन करो इन्सपैक्टर मैं उससे ऐसे वादे क्यों करूँगा? मैं तो उसे ठीक से जानता तक नहीं।’

उसने अपनी ताड़ती हुई नजरें मेरे चेहरे से हटायी नहीं। बस घूरे ही जा रहा था मुझे।

‘हो सकता है... लेकिन योगिता ने बयान दिया है कि तुमने उससे खिलवाड़ किया है और इसी वजह से उसने ये कदम उठाया!’

‘वो झूठ बोल रही है! मैंने ऐसा कुछ नहीं किया। कितनी बार आपको बताना पड़ेगा कि मैं उसे ठीक से जानता तक नहीं!’ मेरा सब्र छूट गया।

‘आवाज नीची ही रखो मिस्टर अंश सहाय!’ अपनी कुर्सी छोड़कर वो मेरे सामने, मेज के एक कोने पर बैठा। अपनी आँखों को मेरी आँखों में डालते हुए- ‘मैं अच्छे से जानता हूँ कि तुम क्या हो। मुझे बनाने की कोशिश....’ वो बोल ही रहा था कि-

‘इन्सपैक्टर हान्डेकर?’ संजय वकील के साथ दरवाजे पर खड़ा था।

मैंने साँस ली!

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