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उपन्यास >> फ्लर्ट

फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

‘लेकिन क्यों?’ मैं उतना खुश था नहीं जितना मुझे होना चाहिये था।

‘ये तुम मुझसे पूछ रहे हो?’ उसने मजाक में कहा।

‘और तुम्हारे पिताजी का क्या?’

‘मैंने उन्हें कह दिया है कि मुझे इस शादी के लिए फोर्स करेगें तो मैं घर से भाग जाऊँगीं।’ वो खुद पर ही खींसें निकाल रही थी।

मैं जम सा गया ये सुनकर। बेवकूफ लड़की!

प्रीती हमेशा से पागल थी लेकिन इतनी? इतनी कि सब कुछ दाँव पर लगा दिया साथ ही अपने खानदानी बाप की इज्जत भी! उसने कुछ नहीं सोचा सिवाय मेरे, न मेरा अतीत न वर्तमान, न अपना भविष्य, न मेरी अच्छाईयाँ न बुराईयाँ, कुछ नहीं।

संजय अब भी मेरी तरफ हैरान परेशान से देख रहा था। उसने मेरी बातें सुनी तो लेकिन उसे समझ कुछ ना आया। जैसे ही मैंने उसे सारी कहानी सुनायी... उसने हँसते हुए मुझे गले लगा लिया।

उसका रिश्ता टूटने के कुछ दिन बाद मेरी मम्मी ने प्रीती के पापा से हमारी शादी की बात की। वो अपनी बेटी के प्यार की हद पहले ही देख चुके थे इसलिए वो मान ही गये और हमारी सगाई तय हो गयी। जिस दिन हमारी सगाई की तारीख मुझे बतायी गयी ठीक उसी दिन से प्रीती ने मुझे समझाना शुरू कर दिया कि मैं इस बारे में फिर से विचार करूँ। उसे लगता था कि मेरा ये फैसला जल्दबाजी में लिया गया फैसला है और ज्यादा समय तक मैं इस फैसले पर बना नहीं रह सकूँगा। मेरे पास उसे देने के लिए जवाब तो था लेकिन मैं कथनी से ज्यादा करनी पर यकीन रखता था। सगाई तक मैंने कुछ साबित करने की कोशिश नहीं की।

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