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उपन्यास >> फ्लर्ट

फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

89

20 दिन बाद

एक सुबह 6 बजे।

अपने तकिये को अपने सिर और कानों पर भीचते हुए मैं बार-बार वो आती हुई कॉल काटे जा रहा था। ये संजय की कॉल थी। मैं बस एक घण्टे और सो जाना चाहता था लेकिन ये भी पता था कि वो बात किये बिना मानेगा नहीं।

मुझे कॉल उठानी ही पड़ी।

‘येस संजय...’ मैंने ऊँघते हुए कहा।

‘सो रहा है?’

‘हाँ, शायद।’ क्या बेवकूफी भरा सवाल था।

‘तो जाग! और अपना टी वी आन कर।’

‘टी वी? क्यों?’ मैं टी वी का रिमोट टटोलने लगा जो कि मेरे बिस्तर में ही कहीं गुम हुआ था पिछली रात।

संजय जानता था कि मुझे टी वी से नफरत है लेकिन उसके बावजूद भी वो मुझे देखने को बोल रहा था तो जरूर कोई ठोस वजह थी उसके पीछे।

‘अभी कुछ दिन पहले ही एड एजेन्सी का मूहूर्त किया है आज ही ताले पड़वायेगा क्या?’

‘क्यों क्या किया है मैंने?’ मैंने पूछा ‘और ये रिमोट नहीं मिल रहा मुझे!’ मैंने बिस्तर पर हाथ मारा।

‘तो अखबार पकड़ ले। तेरी और सोनाली की खबरें उड़ रहीं है- सोनाली राय अंश का नया टारगेट। डैम इट!’

मैंने कुछ सोचा-

‘लेकिन ऐसी खबर तो पहले भी उड़ी थी।’

‘हाँ और उस वक्त वो सिर्फ अफवाह थी लेकिन इस बार सोनाली भी इसमें शामिल है। बडे़ प्यार से, बड़े विश्वास से सबको कहती फिर रही है कि - ‘वी आर टुगैदर, तुम दोनों कब से टुगैदर हो गये?’

संजय की आवाज में जो हैरानी थी, जो जायज थी क्योंकि ये बात सुनकर अब मैं भी हैरान था। काफी दिनों बाद उसकी तरफ से अचानक ये खबर मिली थी मुझे।

मेरी आँखों से नींद एकदम गायब हो गयी!

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