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उपन्यास >> फ्लर्ट

फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

‘संजय, मैंने जो कुछ किया वो सब एक प्लान था। मैं सोनाली के प्यार की हद देखना चाहता था और मैंने देखा कि वाकई पागल है मेरे लिए।’

ये मेरी ही आवाज थी! मेरे ही शब्द थे! कुछ पलों में ही ये रिकार्ड़िंग खत्म हो गयी लेकिन हर क्यों का जवाब देने को काफी थी।

मैंने स्क्रीन से नजरें उठाकर संजय की तरफ देखा। नाराजगी थी, गुस्सा था कि क्यों उसने ये रिकार्ड़िंग आज तक सम्हाली? क्यों उसने सोनू को सुनायी? क्या करना चाहता था वो?

संजय के चेहरे का उडा रंग उस अन्धेरे कोने में भी साफ दिख रहा था।

‘मुझे तुमसे ये उम्मीद नहीं थी।’ मेरी पकड़ उस मोबाइल पर कसती चली गयी। आखिर ये वो इन्सान है जिस पर मैंने खुद से भी ज्यादा यकीन किया था। मुझे अल्फाज नहीं मिल रहे थे कि किस तरह अपना गुस्सा उस पर जाहिर करूँ।

‘ये.... ये तो बहुत पहले की है यार! तुझे लगता है कि ये वजह हो सकती है उसके ऐसा करने की?’ अल्फाज उसे भी नहीं मिल रहे थे। मेरे चेहरे पर अपने लिए गुस्सा और शक देखकर वो सफाई देने लगा। ‘अंश.... देख जो तू सोच रहा है वैसा नहीं है। विश्वास कर मेरा!’ उसने मेरे कन्धे पकड़कर लिये।

‘मैं कैसे कर सकता हूँ?’ मैंने उसे पीछे धकेल दिया।

‘अंश तू मुझे गलत समझ रहा है....’

‘तो? क्या मतलब है ये रिकार्ड़िंग अब तक सम्हाले रखने का?.... और क्या मतलब है ये सोनू को सुनाने का?’ मैंने वो मोबाइल जमीन पर दे मारा। मेरी साँसें, मेरी धड़कनें काबू से बाहर थीं। न जाने क्या कर जाने को था मैं। और संजय कमर पर हाथ रखे, परेशान सा मुँह बनाये चारों तरफ बैचेनी से जैसे कोई रास्ता तलाश रहा था।

कुछ सफाई देने के लहजे में उसने एक बार फिर मुझे समझाना चाहा।

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