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उपन्यास >> फ्लर्ट

फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

काश कि उसने मेरे खामोश आँसुओं की आवाज सुनी होती तो मुझे भी कुछ कहने का मौका दिया होता।

मैंने अपने चेहरे से उसकी शिकायतों और अपने दर्द के सारे नम निशान मिटाये और वार्ड में दाखिल हो गया।

‘उन्होंने क्या कहा?’ संजय ने मुझे देखते ही पूछा।

‘कुछ नहीं।’ मैं सोनू के पास जाकर बैठ गया।

‘आन्टी कल सुबह गति और रेनू के साथ यहाँ पहुँच जायेगी। मैं उन्हें रिसीव कर लूँगा।’

‘थैंक्स।’ मैंने उसी खालीपन भरी आवाज में कहा और नजरें फिर सोनू की मूंदी हुई आँखों पर कर लीं।

सोनू को पाँच घण्टों में होश आ जाना चाहिये था लेकिन सात घण्टे बीत जाने पर भी वो उसी गहरी नींद में थी। हमारी उम्मीदें छूटती जा रहीं थीं। मिसेज राय का सब्र दम तोड़ रहा था और उनके होंठ अब पहले से कहीं ज्यादा हिल रहे थे सोनू के लिए दुआ करते हुए। बाहर मीड़िया, पुलिस सब राय साहब की बेटी का बयान लेने के लिए साँसें रोके इन्तजार कर रहे थे। राय साहब हर पाँच सात मिनट में अपने आदमियों से वार्ड की खबर ले रहे थे। सब के पास अपना एक खास काम था और मेरे पास भी। उँगलियों को आपस में उलझाये मेरी नजरें ईसीजी स्क्रीन पर गड़ी हुई थीं जिसमें मैं सोनू के धड़कते दिल की तरगें उठते गिरते देख रहा था।

जब-जब मेरी नजरें उसके बेजान से चेहरे पर पडतीं मेरा मन कह उठता- इस सब के लिए तुम्हें कभी माफ नहीं करूँगा।

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