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उपन्यास >> फ्लर्ट

फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

बाइक सड़क के किनारे लगाकर मैं उसके सहारे टेक लिये खड़ा हो गया। मैं चुपचाप उसकी तरफ देख रहा था, चाहता था कि कोमल मुझसे खुद से कुछ पूछे। उसने मुझे ज्यादा इन्तजार नहीं करवाया।

‘अंश हम यहाँ क्यों रूके हैं?’ वो लगभग चिल्ला पड़ी।

‘कुछ बात करनी थी।’ उसके भड़के लहजे पर भी मैं शान्त ही था।

‘कहो, क्या बात करनी है?’

‘तुमको नहीं पता?’

एक पल को वो जैसे सुन्न हो गयी।

कोमल के लिए ये सब पता नहीं कैसा रहा होगा लेकिन मेरे लिए, मेरे लिए कुछ ऐसा था जैसे बिना बीमारी के दवा खाने वाला हूँ! समझ नहीं आ रहा था कि कहाँ से शुरूआत करूँ? क्या कहूँ? और सबसे बड़ी बात...क्यों कहूँ?

मैं चुप था और अब कोमल सवाल करने लगी।

वो मुझे सोचने का मौका ही नहीं दे रही थी।

‘अंश तुम्हें कुछ कहना भी है? हम यहाँ ठण्ड क्यों खा रहे हैं?’ वो चिढ़ चुकी थी....

‘तुम लड़कियाँ एक मिनट चुप नहीं रह सकती न। सोचने दो प्लीज!’ और मैं भी।

‘तुम सोच क्या रहे हो? मेरी तबीयत वैसे ही खराब चल रही है और तुम हो कि...’

‘हाँ, यही बात करनी थी! आजकल तबीयत बहुत खराब रहती है तुम्हारी। क्या हुआ है तुमको? कैंसर, टी.बी.? ऐसी कौन-सी बीमारी लग गयी है तुमको?’

थोड़ी देर तक उसे कोई जवाब ही नहीं सूझा। उसने अपना लहजा बदल लिया।

‘अंश हमें देर हो रही है।’

‘देखो कोमल, मुझे बातों की जलेबी बनाना नहीं आता इसलिए सीधे-सीधे कह रहा हूँ। मैं जानता हूँ कि तुम्हारी परेशानी क्या है लेकिन, मैं... मैं, अगर तुमको पसन्द नहीं करूँगा, तो तुम ऐसी ही रहोगी क्या? ऐसी अपसेट, उदास?’

‘तुमसे किसने कहा ये सब? ऐसा कुछ नहीं है अंश।’ कोमल ने बड़ी आसानी से कह दिया।

‘मुझे बताया है किसी ने। बोलो क्या करना होगा मुझे जिससे तुम फिर पहले जैसी हो जाओ?’

‘अंश ऐसा नहीं है, मैं कह रही हूँ न।’ उसने सिर झुका लिया।

‘ठीक है, तो मेरी तरफ देखकर बोलो न फिर। सड़क को क्यों घूर रही हो? मैं जानता हूँ कि तुम मुझे पसन्द करती हो लेकिन मैं...’

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