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उपन्यास >> गंगा और देव

गंगा और देव

आशीष कुमार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :407
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9563

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आज…. प्रेम किया है हमने….

तेज आवाज

आज गंगा आई थी।

वही लड़की जो क्लास के शुरू-शुरू में भों-भों करके रो रही थी। वो बड़ी तेज आवाज में बोल रही थी। मैंने नोटिस किया....

लड़कियो को साड़ी पहनने को कहा गया था। इस बात से वो नाखुस थी और सलवार सूट पहनने की परमीशन मांग रही थी। पर आवाज में विनम्रता न थी बल्कि बहुत कड़क आवाज थी..... र्मिची जैसी कर्कश ...जो कानो में चुभे। वैसा विनम्रता का भाव नहीं था जैसी लोग दिखाते है जब किसी चीज की मांग करते हैं। मैंने गौर किया....

‘‘गायत्री!‘‘ ....ये गंगा इतनी जोर से क्यो बोल रही है?

‘‘क्या हम लोग बहरे हैं?‘‘

‘‘क्या ये धीरे नहीं बोल सकती है?

‘‘इसकी आवाज मेरे कानों में चुभती है ....बहुत डिस्टर्ब करती है मुझे!‘‘ देव ने बगल बैठी गायत्री से जानना चाहा।

‘‘अरे देव! ...ये लडकी बड़ी लड़ाका टाइप की है। ये किसी को कुछ समझती नहीं है ...अपने आगे, सारी क्लास की लड़कियों ने डिसाइड किया है कि इससे दूर ही रहेंगी, कोई बात नहीं करेगा इससे!

‘‘कल जब तुम नहीं आये थे तो .....क्लास टीचर से लड़ रही थी और पैसे कम करने के लिए बोल रही थी ...इससे हम लोग को दूर ही रहना चाहिए‘‘ सीधी साधी गायत्री ने देव से सलाह मशविरा किया।

‘‘अच्छा! देव को थोड़ा आश्चर्य हुआ

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