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उपन्यास >> गंगा और देव

गंगा और देव

आशीष कुमार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :407
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9563

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आज…. प्रेम किया है हमने….


देव के बोलने का अन्दाज बिल्कुल साहित्यिक और फिल्मी-2 सा था।

ये सुन सावित्री को अचरज हुआ। उसकी भौंहे एक बार फिर से ऊपर को दौड़ गईं। वो आगे कुछ बोल न सकी देव की ये कल्पनाशीलता देखकर।

‘नहीं! नहीं! देव! आप उस लड़की को भूल जाइये!’ सावित्री ने सरसरी तरह से देव से कहा जैसे डाक्टर सहज रूप से कहे कि आपको चावल, दही या फला चीज का परहेज करना है। सावित्री ने उसमें बहुत अधिक गंभीरता नहीं दिखाई। मैंने देखा...

उसने कानपुर टेलीफोन कर ये बात देव के डैडी को बताई। वो आगबबूला हो गये। पर फिर भी उन्होंने इस बात को गंभीरतापूर्वक नहीं लिया। बस एक मजाक समझा। मैंने देखा...

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अब देव गंगा को छुप-2 कर देखने लगा। छुप-2 कर इसलिए क्योंकि गंगा बिल्कुल झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई जैसी थी। मैंने पाया...

गंगा का व्यक्तित्व बहुत मर्दाना था जैसे कोई योद्वा। गंगा में लड़ाई-झगड़ा, दंगा, मारपीट करने की योग्यताऐं जन्मजात थी। उसे देखकर यही लगता था। ये स्वभाव देव के स्वभाव का बिल्कुल उल्टा था। क्योंकि देव बहुत सज्जन और कोमल हदय था। मुझे पता चला....

छुप छुप के! छुप छुप के!
चोरी से चोरी से!
छुप छुप के! छुप छुप के!
बंटी की बबली हुई .......बबली का बंटी
छुप छुप के! छुप छुप के!

मैंने गाया देव के लिए। देव ने सुना….

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