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उपन्यास >> गंगा और देव

गंगा और देव

आशीष कुमार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :407
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9563

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आज…. प्रेम किया है हमने….


‘‘सच में भाई! शादी करो तो हलवाईयों में!‘‘ जैसे देव के हाथों अलीबाबा-चालीस चोर वाला खजाना हाथ लग गया हो।

‘हाय राम! कहीं गंगा से शादी करने के बाद मुझे शुगर-वुगर न हो जोए!’ देव के मन में विचार आया।

फिर देव की नजर एक बड़े से फ्रीजर पर पड़ी। सारा का सारा तरह-तरह की कोल्डड्रिंक्स से भरा पड़ा था।

‘‘बाप रे बाप! इतनी सारी कोल्डड्रिंक्स?‘‘ देव को बड़ा आश्चर्य हुआ।

‘‘मुझे तो कोल्डड्रिंक्स बहुत पसन्द है! इसका मतलब कि अगर मेरी शादी गंगा से हो जाए तो जब चाहूँ जितनी कोल्डड्रिंक्स पी सकता हूँ! सुबह चाय की जगह कोल्डड्रिंक्स, फिर दोपहर के खाने के साथ कोल्डड्रिंक्स, फिर रात के खाने के साथ। पानी पीना बन्द और कोल्डड्रिंक्स पीना शुरू‘‘ देव ने कहा। मैंने सुना....

‘‘सच में! अब मुझे बिल्कुल भी देर नहीं करनी चाहिए! मुझे अब गंगा को जल्द से जल्द पटा लेना चाहिए!‘‘ देव ने मन ही मन फैसला किया।

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फिर देव ने गंगा के बाबू को देखा.....

वो एक साठ साल का उम्रदराज व्यक्ति था। उसकी बड़ी-बड़ी मूँछें थीं और बड़ी सी तोंद!‘‘ वही तोंद जो 99 प्रतिशत हलवाइयों की होती है।

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