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उपन्यास >> गंगा और देव

गंगा और देव

आशीष कुमार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :407
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9563

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आज…. प्रेम किया है हमने….


‘‘गंगा के सारे बाल झर रहे है, कुछ ही दिनों में गंजी होने वाली है‘‘ देव बोला।

‘‘हाय! हाय! देव! ये कैसी लड़की से प्यार करता है तू?‘‘ मामी से अपनी दोनों आँखें बड़ी करते हुऐ पूछा।

‘‘अब क्या करे मामी! दिल लगा गधी से, तो परी क्या चीज है‘ वाली बात है..... गंगा से प्यार हो गया, प्रेम हो गया और गंगा में ही मुझे अपना भगवान मिल गया‘‘ देव ने बड़ा अजीब सा मुँह बनाकर ये बात कही।

‘‘हा! हा!‘‘ मामी देव की भाव-भंगिमा देखकर बड़ी जोर से हँस पड़ी। मैंने देखा...

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