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उपन्यास >> गंगा और देव

गंगा और देव

आशीष कुमार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :407
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9563

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आज…. प्रेम किया है हमने….


‘‘पहले ही दिन से.... जब हमने तुम्हें पहली बार देखा था‘‘ देव ने बताया सच-सच।

‘‘....तुम्हें देखते ही हमें तुमसे पहली नजर वाला प्यार हो गया था!‘‘ देव ने बताया।

गंगा ने सुना।

‘अच्छा!’ गंगा को आश्चर्य हुआ।

‘.....लो आँसू पोछ लो!’ गंगा ने तुरन्त ही एक सूती सफेद रूमाल देव को दिया।

देव ने आँसू पोछे।

‘इसे रख लूँ!’ देव रूमाल को अपने पास रखना चाहता था।

‘क्यों?’ गंगा ने पूछा।

‘ रात में नींद नहीं आती! ...तुम्हारी याद आती है! अगर ये पास होगा तो नींद आ जायेगी!’ देव ने रूमाल का महत्व बताया।

‘एक ही है!’ गंगा ने मजबूरी बतायी।

‘अच्छा कोई बात नहीं!’ देव ने मना कर दिया।

‘अच्छा रख लो!’ गंगा ने दया दिखाई।

‘ठीक है!’ देव ने रूमाल को बड़ी हिफाजत से तय किया जैसे कोई बहुत कीमती वस्तु हो और अपनी पैन्ट की जेब में रख लिया।

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