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उपन्यास >> जलती चट्टान

जलती चट्टान

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :251
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9579

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एक

 

रेलगाड़ी ने जब सीतापुर का स्टेशन छोड़ा तो राजन देर तक खड़ा उसे देखता रहा। जब अन्तिम डिब्बा सिगनल के करीब पहुँचा तो उसने एक लंबी साँस ली। अपने मैले वस्त्रों को झाड़ा, सिर के बाल सँवारे और गठरी उठाकर फाटक की ओर चल पड़ा।

जब वह स्टेशन के बाहर पहुँचा तो रिक्शे वालों ने घूमकर आशा भरे नेत्रों से उसका स्वागत किया। राजन ने लापरवाही से अपनी गठरी एक रिक्शा में रखी और बैठते हुए बोला – सीतलवादी।

तुरंत ही रिक्शा एक छोटे से रास्ते पर हो लिया, जो नीचे घाटी की ओर उतरता था। चारों ओर हरी-भरी झाड़ियाँ ऊँची-ऊँची प्राचीर की भाँति खड़ी थीं। पक्षियों के झुंड एक ओर से आते और दूसरी ओर पंख पसारे बढ़ जाते कि राजन की दृष्टि टिक भी न पाती थी। वह मन ही मन प्रसन्न हो रहा था कि वह स्थान ऐसा बुरा नहीं – जैसा वह समझे हुए था।

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