कविता संग्रह >> कह देना कह देनाअंसार कम्बरी
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आधुनिक अंसार कम्बरी की लोकप्रिय ग़जलें
जो हम लड़ते रहे भाषा को लेकर
कोई ग़ालिब न तुलसीदास होगा
आप सूरज को मुठ्ठी में दाबे हुये
कर रहे हैं उजालों का पंजीकरण
मौत के डर से नाहक़ परेशान हैं
आप ज़िन्दा कहाँ हैं जो मर जायेंगे
आ गया फागुन मेरे कमरे के रौशनदान में
चन्द गौरय्या के जोड़े घर बसाने आ गये
हम अपनी अना लेके अगर बैठ गये तो
प्यासे के क़रीब आयेगा एक रोज़ कुआँ भी
अंसार क़म्बरी की सपाट बयानी उनकी ग़ज़लों की विशेषता है। उन्होंने सामान्य बोलचाल की भाषा में ग़ज़लें कहीं हैं जिसके कारण दुरूहता के अंधे जंगल में भटकना नहीं पड़ता।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि श्री क़म्बरी की ग़ज़लों का संकलन राष्ट्रीय एकता, सौहार्द का वातावरण बनाने एवं समाज को एक दिशा प्रदान करने में सहायक सिद्ध होगा, इन्हीं शुभकामनाओं सहित।
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रंजन अधीर
अनुक्रम
- कह
देना.... ग़ज़ल संग्रह
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- कृतज्ञता
- जहाँ पर आपका आभास होगा
- ज़िन्दा रहे तो हमको क़लन्दर कहा गया
- आहट सी हो रही है मेरे दर के आसपास
- न कर ग़रुर अभी है, अभी रहे न रहे
- तेरा आँचल जो ढल गया होता
- हम कहाँ आ गये आशियाँ छोड़कर
- यहाँ कोई भी सच्ची बात अब
- मेरे मत से कोई अवगत नहीं है
- क्या हक़ीक़त है ये सोचना चाहिये
- बह रही है जहाँ पर नदी आजकल
- दिन भर याद बहुत आता है
- खिल उठीं सरसों की कलियाँ
- ख़याले यार मन में आ गया है
- तू अगर कह दे तेरी राह से हट जाऊँगा
- मैं चलने को तय्यार हूँ ले चल तू जहाँ भी
- बात सुन कर कोई फ़ैसला दीजिये
- किसी के ख़त का बहुत इन्तिज़ार करते हैं
- मैं जानता हूँ तुमको विश्वास नहीं होगा
- इसको क्या पूछना, किसको क्या मिल गया
- राम के स्वागत में फैली है ख़ुशी की रौशनी
- अपने दामन को अब और नम क्या करें
- आप कहते हैं दूषित है वातावरण
- दो किनारों का मिलना भी दुश्वार है
- मुझपे वो मेहरबान है शायद
- किसे बतलायें क्या-क्या
- जहाँ हिन्दी, जहाँ उर्दू रहेगी
- तुमने तन या धन देखा है
- चेहरा-चेहरा यहाँ आज क्यों ज़र्द है
- तुम्हारी बज़्म में अब किसका इन्तिख़ाब करूँ
- जब से पश्चिम से सूरज निकलने लगा
- रौब दुनिया पे अपना जमाने चले
- हम तो कर लेते हैं पत्थर से भी अक्सर बातें
- माना राहों से हट गयीं ग़ज़लें
- सफ़र तो है ज़मीं से आसमाँ तक
- गर्दिशों में भी यूँ चमकूँ कि शरारा हो जाऊँ
- लाख छुप-छुप के करो तुम गुनाह परदे में
- मुझे वो ऐसे अक्सर तोड़ता है
- वक़्त से माँगें तो क्या माँगें
- होना मुक़ाबला है नज़र का
- शायर हूँ कोई ताज़ा ग़ज़ल सोच रहा हूँ
- जज़्बात की ख़ुशबू से मुअत्तर न मिलेगा
- फूल क्या काँटे भी तो सस्ते नहीं हैं दोस्तो
- राहज़न आदमी, राहबर आदमी
- वो जनम-जनम से उदास है
- कोई रहज़न न कोई राहबर था
- मैं बनाऊँगा तेरी मूर्तियाँ
- दर्दो-ग़म की किताब क्या रखना
- ख़र्च अपनी सारी दौलत कर चुके
- धूप का जंगल, नंगे पावों
- ज़बाँ पर बद-कलामी आ न जाये
- किसी की ज़िन्दगी गर मैकशी में…
- आख़री दौर में हैं जीवन के
- हमारे घर में पत्थर आ रहे हैं
- जाने कैसे हमारा मकाँ जल गया
- रौशनी नहीं होती आजकल मशालों में
- सामने आँधियों के जलायेंगे हम
- मिल गया हमको सब कुछ ये मशहूर है
- जागने का जब था अवसर सो गया
- हर कोई खेल दिखाता है क्या किया जाये
- टूटे हैं हमपे इतने सितम टूट गये हैं
- वो सुनहरे दिन हमें रातें सुहानी दे गया
- दुनिया के हादिसों से क्यूँ घबरा रहे हैं आप
- दिन भर की उदासी का यूँ जश्न मनाते हैं
- एक तरफ़ा वहाँ फ़ैसला हो गया
- ऐसे न फेक अब यहाँ पत्थर उछाल कर
- एक नदी ग़म के आँसू बहाती रही
- कोई चौखट कोई दर नहीं
- हम न होंगे तो हमारी भी कहानी होगी
- जो बात मुद्दतों से मेरे दिल में रह गयी
- ज़िन्दगी की हसीन राहों में
- होगा दरिया तो होगा साहिल भी
- भरपूर नशे में हूँ, मैं चूर नशे में हूँ
- जिनमें धड़कते दिल हों वो पैकर नहीं रहे
- इसमें तो नज़र आयेंगे हालात मिलन के
- आँख का काजल तुम्हारे पास है
- लौटकर जब कभी जाना मेरे घर कह देना
- ऐसा अगर कभी हो क्या लुत्फ़े ज़िन्दगी हो
- हम इधर भी रहे, हम उधर भी रहे
- रेत पर एक मछली मचलने लगी
- अब गुज़र जाये चाहे जहाँ ज़िन्दगी
- हिरनियों में भी हो गयी हलचल
- मोहब्बत तुम भी करते हो
- चाँद-तारे निगल गया सूरज
- इस पार देखकर कभी उस पार देखकर
- राहज़न आपकी डगर तक है
- ऐसा लगता है किसी की मेहरबानी हो गयी
- हमारे मुल्क में दुश्मन के लश्कर टूट जाते हैं
- आता नहीं क़रार दिले-बेक़रार में
- थोड़ी झूठी है, थोड़ी सच्ची है
- ज़िन्दगी के मज़े उड़ाने दो
- तेरी पलकों पे जो ठहरा है आँसू
- जाने कितने फूल शबनम से भिगोती है सहर
- काल पूरा हुआ राम वनवास का
- मैं तुझे लाजवाब कर दूँगा
- वो शायरी में अनोखे ख़याल देता है
- आँधियों में दिये जलाना है
- वो हैं के वफाओं में ख़ता ढूँढ रहे हैं
- घूमता फिरता हूँ आवारा नहीं
- तेरी यादों में खो गया हूँ मैं
- हम शरण उनके द्वार लेते काश
- वक़्त है ऐसा परिंदा लौट कर आता नहीं
- कहीं पे जिस्म, कहीं सर दिखाई देता
- मैं आईना हूँ किसी को दिखा लिया होता
- देश की, धर्म की, बिगड़े हालात की
- हमसे मत पूछिये अब किधर जायेंगे
- आये जो उसके ज़ेरे-लब गुस्सा
- कोई खिलता गुलाब क्या जाने
- ये जिस्म का मकान घड़ी दो घड़ी का है
- हुजूमे-कशमकश में आदमी घबरा ही जाता है
- तश्नालब जब हिसाब माँगेगा
- मोहब्बत से करती मोहब्बत मोहब्बत
- ज़िन्दगी क्या है पता क्या करना
- यार ऐसे बैठ कर मत हाथ मल
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