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कह देना

अंसार कम्बरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :165
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9580

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२६

जहाँ हिन्दी, जहाँ उर्दू रहेगी


जहाँ हिन्दी, जहाँ उर्दू रहेगी
मोहब्बत की वहाँ ख़ुशबू रहेगी

यही कहती हैं आपस में ये बहने
जहाँ हूँ मैं वहीं पर तू रहेगी

नहीं करना जुदा करने की साजिश
मैं इसके, ये मेरे बाज़ू रहेगी

अगर साहित्य चमकेगा जहाँ में
अदब की रौशनी हर सू रहेगी

तुम्हारी बात भी भायेगी सबको
हमारी बात भी मौज़ू रहेगी

हैं दोनों साथ जैसे चोली-दामन
कभी मैं-मैं, कभी तू-तू रहेगी

यही कहते हैं अर्बाबे-क़लम भी
जहाँ हिन्दी, वहाँ उर्दू रहेगी

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