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कविता संग्रह >> कह देना

कह देना

अंसार कम्बरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :165
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9580

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२८

चेहरा-चेहरा यहाँ आज क्यों ज़र्द है


चेहरा-चेहरा यहाँ आज क्यों ज़र्द है
जिस तरफ़ देखिये दर्द ही दर्द है

अपने चेहरे में कोई ख़राबी नहीं
आपके आईने पर बहुत गर्द है

इस क़दर हम जलाये गये आग में
अब सूरज भी अपने लिये सर्द है

साथ देता रहा आख़री साँस तक
दर्द को दर्द कहिये न हमदर्द है

बोझ है ज़िन्दगी, इसलिये ‘क़म्बरी’
जो उठाले इसे बस वही मर्द है

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