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कह देना

अंसार कम्बरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :165
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9580

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३५

गर्दिशों में भी यूँ चमकूँ कि शरारा हो जाऊँ


गर्दिशों में भी यूँ चमकूँ कि शरारा हो जाऊँ
जो न डूबे उसी किस्मत का सितारा हो जाऊँ

चाहता हूँ मैं यही राह न भटके कोई
मंजिलों से जो मिले जा के वो रस्ता हो जाऊँ

चाँद को देख के उसको भी खिलौना समझूँ
और फिर माँ के लिये एक खिलौना हो जाऊँ

जो चला करते है लोगों से सियासी चालें
ऐसे लोगों के लिये नहले पे दहला हो जाऊँ

मैं तो इक आईना हूँ, सच ही कहूँगा लेकिन
तेरे ऐबों के लिये काश मैं परदा हो जाऊँ

काँटा काँटे से निकलता जिस तरह मैं भी
जिससे मरता हूँ उसी ज़हर से अच्छा हो जाऊँ

‘क़म्बरी’ की ये तमन्ना है तेरी चाहत में
तेरे पैकर में ढलूँ तेरे ही जैसा हो जाऊँ

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