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कह देना

अंसार कम्बरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :165
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9580

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३७

मुझे वो ऐसे अक्सर तोड़ता है


मुझे वो ऐसे अक्सर तोड़ता है
के आज़र जैसे पत्थर तोड़ता है

उसे भूला तो खो जाऊँगा मैं भी
मेरी हिम्मत को ये डर तोड़ता है

सजाये रख इन्हें पलकों पे अपनी
ये मोती काहे रोकर तोड़ता है

बड़ा बेदर्द है दुनिया के दिल को
सुनामी से समन्दर तोड़ता है

वही रिश्ता है जो जोड़े है सबको
अगर बिगड़े वही घर तोड़ता है

बनाये जो महल रातों में उसने
उन्हीं महलों को दिनभर तोड़ता है

कोई बच्चा नहीं है ‘क़म्बरी’ अब
के आईने से पत्थर तोड़ता है

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