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कविता संग्रह >> कह देना

कह देना

अंसार कम्बरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :165
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9580

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४२

फूल क्या काँटे भी तो सस्ते नहीं हैं दोस्तो


फूल क्या काँटे भी तो सस्ते नहीं हैं दोस्तो
इसलिये सब लोग अब हँस्ते नहीं हैं दोस्तो

खिड़कियों से झाँकिये मत अब सड़क पर आईये
हाथ में पत्थर हैं गुलदस्ते नहीं हैं दोस्तो

हम सभी ने एक सी तालीम पाई है यहाँ
पेट कस्ते हैं, कमर कस्ते नहीं हैं दोस्तो

एक से झंडे दिखाई दे रहे हैं दूर तक
हर तरह के लोग अब बस्ते नहीं हैं दोस्तो

इनपे गंगुवा भी चलेगा और राजा भोज भी
ये किसी के पैतृक रस्ते नहीं हैं दोस्तो

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