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कह देना

अंसार कम्बरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :165
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9580

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४५

कोई रहज़न न कोई राहबर था


कोई रहज़न न कोई राहबर था
हमें लूटा है जिसने हमसफ़र था

जो तूफ़ाँ थम गया उठने से पहले
हमारे डूब जाने का असर था

मुझे तूने ही जो चाहा बनाया
मैं जब दुनिया में आया बेख़बर था

उसे भी ले गया सूरज चुरा कर
जो ख़्वाबों में हमारे रात भर था

उन्हीं लोगों ने मारा ‘क़म्बरी’ को
के जिनका हाथ उसकी पीठ पर था

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