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कह देना

अंसार कम्बरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :165
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9580

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७२

भरपूर नशे में हूँ, मैं चूर नशे में हूँ


भरपूर नशे में हूँ, मैं चूर नशे में हूँ
कर और न पीने पर मजबूर नशे में हूँ

मैख़ाना नहीं देखा, मैख़ार नहीं हूँ मैं
देखा है जबसे मैंने इक नूर नशे में हूँ

आँखों से पिये कोई, होंठों से पिये कोई
सबके अलग-अलग हैं दस्तूर नशे में हूँ

वो शैख़ो-बरहमन हो, ज़ाहिद हो, पुजारी हो
हो जायें निगाहों से सब दूर नशे में हूँ

तुम पी के हो रहे हो बदनाम क्या करूँ मैं
मैं पी के हो रहा हूँ मशहूर नशे में हूँ

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