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कह देना

अंसार कम्बरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :165
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9580

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८०

अब गुज़र जाये चाहे जहाँ ज़िन्दगी


अब गुज़र जाये चाहे जहाँ ज़िन्दगी
चन्द सासों का है कारवाँ ज़िन्दगी

ढूँढते-ढूँढते थक गया है कोई
खो गयी है न जाने कहाँ ज़िन्दगी

आपको को तो विरासत में ख़ंजर मिले
और हमको मिली बेज़बाँ ज़िन्दगी

फिर वही मुश्किलें सामने आ गयीं
हमपे जब-जब हुयी मेहरबाँ ज़िन्दगी

हमने तुमसे कहा, तुमने उनसे कहा
इस तरह बन गयी दास्ताँ ज़िन्दगी

देखते - देखते हो गयी दोस्तो
बुलबुले की तरह बेनिशाँ ज़िन्दगी

कामयाबी पे इनता न इतराईये
‘क़म्बरी’ लेगी फिर इम्तेहाँ ज़िन्दगी

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