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कह देना

अंसार कम्बरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :165
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9580

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८३

चाँद-तारे निगल गया सूरज


चाँद-तारे निगल गया सूरज
आग ऐसी उगल गया सूरज

ये नतीजा है सर पे चड़ने का
किस तरह मुँह के भल गया सूरज

इसलिये मैं दिये जलाता हूँ
मेरे घर से निकल गया सूरज

शाम होते ज़मीं को लगता है
आस्माँ से फिसल गया सूरज

उसको दिनभर नहीं मिला कुछ भी
अपने हाथों को मल गया सूरज

चाँद-तारों को रौशनी देकर
शाम चुपके से ढल गया सूरज

‘क़म्बरी’ ये समझ नहीं पाया
कौन सी शै से जल गया सूरज

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