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कह देना

अंसार कम्बरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :165
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9580

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८८

आता नहीं क़रार दिले-बेक़रार में


आता नहीं क़रार दिले-बेक़रार में
इक दिल है वो भी अपने कहाँ इख़्तियार में

वो मुब्तिला है ग़म में, ख़ुशी में या प्यार में
इक दिल है वो भी अपने कहाँ इख़्तियार में

होता है अगर खेल कभी प्यार-प्यार में
फिर जीत में कहाँ है मज़ा है जो हार में

गुम हो गयी सदा मेरी चीख़ो-पुकार में
फिर मुझको डूबना ही पड़ा बींच धार में

पूछा जो हमने हाल जवानी ने ये कहा
है डिग्रियाँ हमारी ग़मे-रोज़गार में

पहले चला गया कोई जायेगा बाद में
जितने है सब लगे हैं यहाँ पर क़तार में

तुम उससे बचके जा नहीं सकते हो ‘क़म्बरी’
हर शय है इस जहान की उसके हिसार में

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