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उपन्यास >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


यह सोचते ही उसे पूनम का ख्याल आ गया जो विरह की जलन से, चुभन से छुटकारा पाकर अपने पिया से जा मिली थी। उस बेचारी के भाग्य के दर्दनाक खेल की कल्पना करके अंजना की आंखों से आंसू बह निकले।

सहसा एक आहट सुनकर उसने पलटकर देखा। सामने शांति खड़ी थी। मां को सामने पाकर वह झिझक-सी गई। कांपते हाथों से उसने वह तस्वीर पुन: रेडियोग्राम पर रख दी और साड़ी के आंचल से अपने आंसू पोंछने लगी।

''और कितने आंसू बहाएगी उसकी याद में बहू! यहां तो आंखों का पानी ही सूख गया है।

''यूं ही मांजी! उनकी तस्वीर देख ली-आंखें भर आईं।''

''कोई औरत ही दूसरी औरत के दिल का दर्द पा सकती है बहू! अब उसकी सारी स्मृतियों को समेटकर अलमारी में बन्द कर दे। न ये सामने होंगी और न तेरा दिल दुखी होगा।''

''नहीं मांजी! ये स्मृतियां तो मेरे जीवन का सहारा हैं। इन्हें बिसार दिया तो मैं एक पल भी न जी सकूंगी।'' अंजना ने कांपते हाथों से उस तस्वीर को दुबारा संभाला और अपने आंचल से साफ करके रेडियोग्राम पर रख दिया।

शांति ने बहू की आंखों में दृढ़ निश्चय को जन्म लेते देखा और उसे भगवान के भोग का प्रसाद देते हुए बोली-''बहू! सच मानो। तुम आ गईं तो हमें बेटे के जाने का गम भूल गया है।''

''मैं भी भगवान से यही प्रार्थना करती हूं मां, कि मुझपर वे जो कुछ भी जिम्मेदारियां डाल गए हैं, उन्हें मैं पूरी तरह से निभा सकूं।''

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