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उपन्यास >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


कमल ने उसकी घबराहट का अनुमान लगाया और उसकी ओर आते हुए बोला-''अरे! ठिठक क्यों गईं आप? ''

''योंही। पागलपन सवार हुआ तो राजीव के साथ खेलने लग गई।''

"पागलपन क्यों? यह तो मन की तरंग है! इसे भला कौन रोक सकता है?"

"यह बंधन, यह दुनिया, मेरा भाग्य!"

''मैं इन रूढ़िवादी बातों को नही मानता। मैं तो यह जानता हूं कि मन के भावों को कुचलना पाप है।'

''वह तो अब इतने दब गए हैं कि उनका उभरना संभव ही नहीं है।''

''यह सच नहीं है।''

कमल की इस बात पर वह चौंक उठी और उसका इरादा भांपने के लिए उसने अपनी निगाहें कमल की नजरों से मिलाईं।

वह तनिक रुककर फिर बोला-''अगर यह सच होता तो आज आपके चेहरे पर इतनी आभा कभी नहीं आती। चंचल मन आज फिर से बच्चों की तरह मचलकर यह आंखमिचौनी नहीं खेलता।''

''संसार वाले तो इसे पाप कहते हैं। वह किसी दुखियारी के अधरों पर मुस्कान देखते ही आपे से बाहर हो जाते हैं।''

''आप ठीक कहती हैं। विधवा से हर कोई सहानुभूति जताना तो जानता है, लेकिन उसके हृदय की पीड़ा समझने का प्रयत्न नहीं करता।''

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