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उपन्यास >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


मां के दिल का दर्द वह जान गई इसलिए उस दाहक स्तब्धता को समाप्त करते हुए वह बोली-''यह उन्होंने दिया था पिछले बरस, मेरे जन्मदिन के अवसर पर।''

''हूं। जानती है, यह उसे कहां से मिला?'' शांति ने मुस्कराहट के साथ पूछा।

''ऊ हूं।''

''मैंने उसे भिजवाया था, अपने पति से चोरी-तेरे लिए।''

''जी, उन्होंने भी यही कहा था कि मांजी ने भेजा है, लेकिन मैंने सोचा, मेरा दिल रखने के लिए कह रहे हैं।''

''तू तो ऐसा सोचेगी ही! हमने अपना विश्वास जो खो दिया था तुझे ठुकराकर।''

''नहीँ मांजी! मैंने कभी ऐसा नहीं सोचा था। मुझे विश्वास था कि एक न एक दिन नफरत की यह दीवार टूट जाएगी। हमारा मेल-मिलाप हो जाएगा। लेकिन मुझे क्या पता था कि यह मिलाप मेरी दुर्भाग्य की छाया में होने वाला है।'' और अंजना की आंखों में आंसू उमड़ आए।

''नहीं बहू, नहीं। ऐसे विचार मन में क्यों लाती हो! विधाता के आगे किसीकी नहीं चलती। होनी को कोई नहीं टाल सकता।''

मां ने अपने आंचल से अंजना के आंसू पोंछ डाले।

जब मां ने उसके गले में वह जंजीर पहनानी चाही तो अंजना ने इंकार कर दिया। मां ने जिद की लेकिन जब वह फिर इंकार करने लगी तो मां ने झट से वह जंजीर उसके गले में डाल दी।

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