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उपन्यास >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


इतने में उसे याद आया कि बाबूजी के लिए कुछ दवाइयां बाजार से ले जानी हैं। सामने का बाज़ार अभी तक खुला हुआ था।

उसने कमल से जीप चलाने के किए कहा और बोली-''किसी कैमिस्ट की दुकान के सामने रोक दीजिएगा।''

''क्यों?''

''बाबूजी के लिए कुछ दवाइयां लेनी हैं। नौकर को नुस्खा देना भूल गई थी।''

कमल ने जीप स्टार्ट की और कुछ ही मिनटों में एक कैमिस्ट की दुकान के सामने ला खड़ा किया। अंजना नीचे उतरी और काउंटर की ओर बढ़ चली। कमल ने जल्दी से गाड़ी की चाबी खींची और अंजना के साथ हो लिया।

अंजना ने काउंटर पर जाते ही बैग से नुस्सा निकालकर काउंटर पर रख दिया। सेल्समैन ने ध्यान से उसकी ओर देखा और इससे पहले कि वह नुस्खे की दवाइयां लाता, वह एकदम बोल पड़ा- ''अंजू! तुम!''

अंजू ने चकित होकर उसे देखा।

वह नुस्खे को हाथ में लेकर फिर बोला-''पहचाना नहीं तुमने? मैं राकेश हूं! लखनऊ में हम एक साथ एक ही कालेज में पढ़ते थे।''

''आपको शायद भ्रम हो गया है। मैं अंजू नहीं पूनम हूं और मैं कभी लखनऊ नहीं गई।'' अंजना ने दृढ़ स्वर में कहा।

राकेश, जो अभी तक फटी-फटी निगाहों से देख रहा था, तुरंत बोला-''आई एम सॉरी मैडम!''

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