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उपन्यास >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


उसकी परेशान और उलझी हुई सूरत को इस बीच कमल ने कई बार ध्यान से देखा। जीप पर बैठते ही उसने पूछा- ''आज कुछ परेशान लगती हो पूनम!''

''नहीं तो। घर लौटने में देर हो गई है। बाबूजी क्या सोचेंगे?''

कमल ने यह सुनते ही जीप चला दी।

कमल और अंजना जब सदर हाल में पहुंचे तो संध्या रात के पहले पहर में बदल चुकी थी। अंजना का दिल भय से कांप रहा था। लाला जगन्नाथ आतिशदान के सामने बैठे आग ताप रहे थे और शांति राजीव का एक स्वीटर बुन रही थी। उनकी आहट पाकर दोनों की निगाहें उनकी ओर उठीं। जगन्नाथ बहू को देखकर मुस्करा दिए।

अंजना ने पास आते ही उनके पैरों को छुआ और वह सारी दवाइयां जो उनके लिए लाई थी बैग से निकालकर सामने की मेज पर रख दीं।

लालाजी ने दुलार से कहा-''तुमने क्यों तकलीफ की बहू? रंगा को नुस्खा दे दिया होता।''

''तकलीफ कैसी बाबूजी! और फिर उसी ओर तो मैं गई थी। सोचा लेती चलूं।''

''और तुम कहो भाई! बर्थ-डे कैसा रहा?'' लाला जगन्नाथ ने कमल की ओर मुंह फेरते हुए पूछा।

''बहुत अच्छा। आप लोग वहां नहीं थे, बस इसी बात का रंज था।''

''लेकिन हमारी प्रतिनिधि हमारी बहू जो थी। बेचारी घर में बैठी-बैठी घुटन महसूस करती रहती है। सोचा, तनिक मन बहल जाएगा।''

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