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उपन्यास >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


''तुम बेकार इससे उलझ पड़ीं।'' लाला जगन्नाथ ने शांति का मुंह बंद कर दिया और फिर बोले-''सीधी बात कह दो ना, केदार बाबू का खत आया है। उन्होंने एक लड़की देख रखी है।''

'वह तो दिन-रात लड़कियां ही देखते रहते हैं। आप उन्हें लिख दीजिए, मुझे उनकी पसन्द से ब्याह नहीं करना है।''

अंजना इस बहस को समझ न सकी। वह उसके पास आई और काँफी का प्याला देते हुए बोली-''कॉफी।''

वह अंजना को सामने पाकर झेंप-सा गया और कनखियों से उसकी ओर देखकर उसने प्याला ले लिया।

''नादान न बनो बेटा।'' शांति फिर बोली-''उनकी पसन्द नहीं तो अपनी पसन्द की ले आना, लेकिन जब तक तू कोशिश नहीं करेगा, कैसे मिलेगी वह लड़की?''

''लेकिन कितनी लड़कियां हैं मां, इस ससार में-जो तुम्हारी बहू की तरह, अपना सब कुछ खोकर भी अपने-आपमें सिमट जाने को ही जीवन समझती हैं! कमल ने कहा और लंबे-लंबे घूंट भरते हुए प्याला खाली कर दिया।

अभी अंजना उसकी बात की तह तक नहीं पहुंची थी कि वह सबको नमस्कार करता बाहर चला गया। लाला जगन्नाथ और शांति चुपचाप उसे देखते ही रह गए।

अंजना ने दूसरा प्याला बाबूजी को देते हुए पूछा-''ये ब्याह-शादी की चर्चा से इतने घबराते क्यों हैं मांजी?

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