उपन्यास >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
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राकेश अलमारी में दवाइयों को शीशियां सजा रहा था कि उसकी निगाहें सहसा किसी सूरत का प्रतिबिंब देख कंपकंपा गई। उसने ध्यान से शीशे में फैले धुंधले चित्र को देखा और फिर झट से पलटकर अंजना की ओर देखा जो अभी-अभी शो-केस के सामने आ खड़ी हुई थी। राकेश ने आज फिर गहरी नजरों से उसके चेहरे की ओर देखा और पास आते हुए धीमी आवाज में बोला-''गुड मॉर्निंग! मैडम!''
अंजना ने मुस्कराकर उसके अभिवादन का उत्तर दिया और साथ लाए नुस्खे को उसके सामने रख दिया। राकेश को लगा जैसे आज उसके चेहरे पर उस दिन की सी घबराहट नहीं है।
वह जल्दी से नुस्खे के अनुसार दवा निकालकर उसके सामने ले आया और बोला-''चार रुपये पचास पैसे।''
''आप यहां दवाइयों का काम कब से कर रहे हैं?'' अंजना ने बैग में से सौ का नोट निकालकर उसकी ओर बढ़ाते हुए पूछा।
''कालेज के फौरन बाद। लगभग साल-भर हो गया।'' उसने रुक-रुककर कहा और अपने नौकर को छोटे नोट लाने के लिए भेज दिया।
अंजना ने कहा-''आइ एम सॉरी! आज मेरे पास एक भी छोटा नोट नहीं है।''
''मैं भी सुबह-सुबह बस पहले ग्राहक का मुंह देख रहा हूं।'' लेकिन यह कहते हुए वह कुछ झेंप-सा गया।
''उस दिन आपने अपनी किसी कालेज-मेट का जिक्र किया था!'' अंजना ने विषय बदलते हुए कहा।
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