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उपन्यास >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


अंजना, जो पहले ही घबराहट से गुमसुम खड़ी थी, कुछ न बोली। कमल का इशारा पाते ही वह उसके साथ दुकान से बाहर चली गई।

न जाने क्यों राकेश देर तक वहीं खड़ा-खड़ा उसे शंकित दृष्टि से देखता रहा। फिर उसकी तस्वीर को एक ओर रखकर अंजना के चेहरे को पढ़ने लगा। उसे लगा जैसे इस पूनम और कालेज की अंजना के बीच कोई गहरा रहस्य है।

''चलिए, मैं आपको घर तक छोड़ आऊं।'' दुकान से बाहर आकर कमल ने कहा।

''ऐसा भी क्या-मैं चली जाऊंगी।''

''लेकिन आपकी गाड़ी?''

''आपसे कहा ना, घर में बैठे-बैठेजी उकताया तो सैर करने बाजार तक निकल आई।''

''बड़ा अच्छा किया। आखिर घर की घुटन में कोई कब तक बैठ सकता है!''

''जी!'' यह सुनते ही वह चौंक गई और फौरन बात बदलते हुए बोली-''आप लगभग एक हफ्ते से हमारे यहां नहीं आए।''

''दौरे पर गया हुआ था, कल शाम ही लौटा हूं।''

''बाबूजी आपका कई दिनों से इंतजार कर रहे थे।''

''वह क्यों?''

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