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उपन्यास >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


''आई एम सॉरी।''

''दोष तो मेरा था जो मैं बच्चे के लिए ढेर सारे खिलौने ले आया। न ये आते और न इनका क्रोध यह रूप धारण करता।'' बनवारी ने झट से बिगड़ी हुई बात बना ली।

''आपका परिचय?'' कमल ने अंजना की क्रोधित मुद्रा और बनवारी की सूरत दोनों को एक साथ निहारते हुए पूछा।

इससे पहले कि वह कुछ कहती, बनवारी स्वयं सामने आ गया और बोला-''मुझे बनवारी कहते हैं। पूनम के शहर का रहनेवाला हूं। आते समय इनकी आंटी ने बच्चे के खिलौने क्या भिजवाए कि ये मुझपर बरस पड़ीं। अब आप ही कहिए मिस्टर...''

''कमल नाम है मेरा।''

''हां मिस्टर कमल! अब आप ही फैसला कीजिए, इसमें मेरा क्या दोष है? बेचारी जब विधवा हुईं तो आंटी ने घर में घुसने न दिया और जब इतने बड़े घराने की बहू कहलाने लगीं तो हरेक रिश्ता जताने लगा। मैं तो बेकार इस झगड़े में आ फंसा। अब इतने खिलौने उठाकर कहां ले जाऊं?''

''बस इतनी-सी बात और यह गुस्सा! यह तो जमाने का दस्तूर है पूनम! जब इन्सान को सहारा देने के लिए दो-चार बाज़ू मजबूत हों तो हर कोई मदद देने के लिए बढ़ता है। और जब वह अकेला होता है तो कोई मुंह तक नहीं लगाता।''

''लाख रुपये की बात कही है आपने। इन्हें समझाइए ना, कि आंटी को माफ कर दें और ये खिलौने रख लें।''

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