उपन्यास >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
''अब कैसे हैं?''
''बिल्कुल ठीक! और हां पूनम! तुमको एक खुशखबरी सुनाने आया हूं।''
''मैं जानती हूं।'' उसने तुरत उत्तर दिया, लेकिन कमल के खिले चेहरे की प्रसन्नता अंजना के दिल पर चोट कर ही गई। वह और पास खिसक आया।
''क्या जानती हो?''
''यही कि आपको कोई लड़की पसंद आ गई है और आपने हां कर दी है।''
वह अंजना की बात पर खिलखिलाकर हंस पड़ा और खांसते-खांसते बोला-''तुम्हें तो बस रात-दिन मेरे ब्याह की चिंता लगी रहती है।''
''तो क्या मैंने गलत समझा है?''
''बिल्कुल गलत। मैं तो तुमसे यह कहने वाला था कि मेरी बहन इस बार कालेज की छुटिटयां मनाने नैनीताल आ रही है।''
''फिर तो बहुत अच्छा होगा। कुछ दिन हम भी घुलमिलकर समय काट लेंगे।
''हां पूनम! वह छोटी-सी, थी जब मेरी मां चल बसीं। मगर वह छोटी बहन न होती तो हम बाप-बेटा कभी के घर से बेघर हो जाते।''
''कौन-सी क्लास में पढ़ती है?''
''बी० ए० फाइनल में, नेशनल कालेज, लखनऊ में।''
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