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उपन्यास >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


अंजना ने कांपते हाथों से वह खत थाम लिया और भर्राई हुई आवाज में पूछा-''कमल बाबू कहां हैं?''

''वे तो चले गए।''

''और राजीव?''

''नीचे बैठा खेल रहा है।''

''तो जाओ, उसे दूध पिला दो।''

रमिया आज्ञा-पालन के लिए तुरत बाहर चली गई। अंजना ने लपककर सामने की खिड़की का पर्दा हटाया। कमलजीप में बैठ चुका था। उसने उसकी चुप्पी और निष्ठुरता को कहीं गलत न समझ लिया हो। यह सोचते ही उसका शरीर पसीने में नहा उठा।

उस खिड़की से हटकर उसने बाहर का दरवाजा बन्द किया और कांपते हाथों से वह चिट्ठी खोली। लिखा था:

''अंजू,

मैं कल शाम नेहरू पार्क में तुम्हारा इंतजार करूंगा-शाम के ठीक छ: बजे।

तुम्हारा बनवारी''

यह पढ़ते ही उसकी आंखों के सामने अंधेरा छा गया। अपने बेजान शरीर को उसने खिड़की का सहारा दिया और फिर उस गहरी झील की ओर देखने लगी।

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