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उपन्यास >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


''तुम तो चली जाओगी ना?''

''हां, कल रात को मेरा अंतिम परफार्मेंस है।''

''उसके बाद?''

बनवारी निरंतर उसके होंठों को मसल रहा था और इस रगड़ से शबनम के शरीर में एक अनोखी तरंग उठने लगी और वह मस्ती में लहराकर बोली-''यहां से शिमला, मंसूरी और फिर दिल्ली।''

''मेरा क्या होगा?''

''जहां जाऊंगी, तुम्हें साथ खींचकर ले जाऊंगी।''

''नहीं शिब्बू!''

यह सुनते ही शबनम को एक धक्का लगा। बनवारी जिस उंगली से उसके होंठों को छू रहा था, उसे उसने दांतों से काट लिया।

बनवारी ने झट उंगली खींच ली और अलग होते हुए बोला-''यह क्या बदतमीज़ी है?''

''फिर तुमने क्यों कहा-'नहीं शिब्बू!''' बच्चों की तरह रूठते हुए उसने तोतली आवाज में कहा और अपना क्रोध दिखाने लगी।

बनवारी ने उसे प्यार से खींचकर अपनी बगल में बिठा लिया और उसे अपनी विवशता बताने लगा कि उसका नैनीताल में रहना बहुत जरूरी है। संभव है पुरानी जान-पहचान और मुहब्बत का सहारा लेकर वह अंजना के फिर समीप पहुंच जाए और उसकी भटकती हुई जिंदगी में स्थिरता आ जाए।

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