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उपन्यास >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


बोतल में दूध डालकर वह बच्चे को पिलाने लगी। रोता-चिल्लाता बच्चा चुप हो गया और जल्दी-जल्दी चुसनी चूसने लगा। अंजना पर मानो एक नया पहाड़ टूट पड़ा। पूनम की शोकातुर ज़िंदगी के बारे में सोचकर वह अपना दुःख-दर्द भूल गई। उस मौन वातावरण में भी इंजन की आवाज ही विघ्न डाल रही थी जो अभी तक खाली डिब्बों को धक्के लगा रहा था।

''अब कहां जा रही हो?'' अंजना ने पूछा।

''नैनीताल, अपनी ससुराल। दोपहर की गाड़ी से यहां पहुंची थी।''

''तुम्हें वहां से कोई लेने नहीं आया?''

''नहीं। और आना भी किसे था!''

''क्यों?''

''वे अपने मां-बाप के इकलौते बेटे थे। इस बुढ़ापे में उन लोगों का सफर करना बहुत मुश्किल है।''

''कैसे लोग हैं?''

''मैं क्या जानूं! मैंने तो अभी तक उन्हें देखा भी नहीं।''

''क्यों?''

वह मौन हो गई। उसने बच्चे के मुंह से बोतल निकाल ली। वह पेट भरने पर सो गया था। पूनम ने कम्बल से उसके कोमल शरीर को ढक दिया और चुपचाप अंजना के बराबर आ बैठी।

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