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उपन्यास >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


''हां, वही तो एक सहारा है मेरा जो तुम्हारी नीयत पर भी विश्वास कर लेती हूं।''

बनवारी ने उसे दो घूंट और पिला दी और बिस्तर पर गिराकर अपने होंठ उसके होंठों पर मसलते हुए कहा-''एक काम करोगी मेरी शिब्बू!''

''क्या?''

''होटल वालों से कहकर यह कमरा कुछ दिनों के लिए मेरे पास रहने दो।''

''फिर?''

''इसे छोड़कर अगर मैं कहीं और रहने लगा तो शायद अपना प्रोग्राम बनते-बनते बिगड़ जाएगा।''

''कितने दिनों के लिए?''

''बस यही आठ-दस दिन के लिए।''

''कह दूंगी।''

बनवारी ने उसे अपने शरीर के साथ भींच लिया। कमरे की बत्ती को मद्धिम कर दिया और प्यार भरे न जाने कितने मधुर शब्द उसके कानों में उंडेल दिए। उसकी बातें एक मीठे जहर की तरह शबनम के मस्तिष्क में उतर गईं और उसने पूरी मस्ती के साथ उन्मादी-सी अपने-आपको समर्पण कर दिया।

एक आग थी, एक धधकती ज्वाला थी, जिसने दोनों को अपनी लपेट में ले लिया।

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