उपन्यास >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
|
38 पाठक हैं |
एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
बाबूजी की बात सुनकर शालिनी खुशी से झूम उठी। अंजना ने शांत भाव से कमल की ओर देखा जिसका चेहरा बहन की तरह खुशी से दमक रहा था। उसे लग रहा था इस हठ में जबान शालो की थी, लेकिन दिल कमल का।
वे लोग चले गए। अंजना उन्हें बाहर के दरवाजे तक छोड़ने गई। वह बड़ी खुश थी। लेकिन ज्योंही उनकी जीप रवाना हुई वह देर तक दरवाजे का सहारा लिए वहीं खड़ी उस जीप गाड़ी को देखती रही जो झील के किनारे-किनारे वीरान सड़क पर दौड़ती चली जा रही थी। जब वह उसकी नजरों से ओझल हो गई तो वह भी अन्दर जाने के लिए पलटी।
आज उसे अन्दर जाना अच्छा नहीं लग रहा था। वह उस खुले वातावरण और हवा के हल्के-हल्के झोकों को छोड़कर फिर उस घुटन में जाते डर रही थी। सुहाना मौसम, खुला आकाश और उसपर चिड़ियों की मनोहर चहचहाहट! वह इन सबको छोड़कर अन्दर जाने से कतरा रही थी।
दो कदम आगे बढ़ी और रुक गई। रमिया सामने जंगले पर से राजीव के धुले कपड़े को जो अब सूख चुके थे, उतार रही थी। अंजना ने उसके पास आकर पूछा-''राजीव कहां है?''
''मांजी के पास बैठा खेल रहा है।''
''उसने दूध पी लिया?''
''जी।''
''तो एक काम कर रमिया!''
|