लोगों की राय

उपन्यास >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

38 पाठक हैं

एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


''क्यों?''

''जरा उनसे काम था।''

''तो अन्दर चले जाओ, मिल लो जाकर।''

''नहीं, मुझे तुम्हारे कुत्ते से डर लगता है।''

''अरे वह तो किसी को कुछ नहीं कहता! हां, चोर-उचक्कों को तुरत पहचान लेता है।''

रमिया की बात सुनकर उसकी सांस एक क्षण के लिए गले में अटककर रह गई, लेकिन उसने अपनी घबराहट छिपाते हुए पूछा-''उस दिन तुमने वह खत मालकिन को दे दिया था ना?''

''हां, और उन्होंने आगे कोई और खत लेने के लिए मना कर दिया है।''

''कहीं तुमने मालकिन से यह तो नहीं कह दिया कि मैंने तुम्हें इनाम दिया था?''

रमिया इस सवाल पर चिहुंक उठी और उसने नकारात्मक ढंग से सिर हिला दिया।

बनवारी ने तुरत जेब से दस रुपये का एक नोट निकाला और उसकी ओर बढ़ाता हुआ बोला-''यह लो, रख लो।''

''आज कोई और चिट्ठी देनी है उन्हें?''

''नहीं, यों ही दे रहा हूं। तुम्हारा मामूली तनख्वाह से क्या बनता होगा!''

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book