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उपन्यास >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


शालिनी ने अपने बैग में से बिस्कुट का पैकेट निकाला और उसे खोलकर सबको बांटने लगी।

अंजना कुछ देर के लिए उस टोली से अलग हो गई। कमल ने बिस्कुट को दांतों से काटते हुए उसकी ओर देखा। वह चट्टान को पार करती हुई उस झरने की ओर जा रही थी। कमल ने जब सब लड़कियों को अपने-आप में मस्त पाया तो तश्तरी में से दो-चार बिस्कुट उठाकर अंजना का पीछा करने लगा।

वह धीरे-धीरे पथरीले रास्ते को पार करता हुआ उसके पास जा पहुंचा। वह झील के पास खड़ी उस झरने के अनोखे दृश्य का आनन्द ले रही थी। थोड़ी ही दूर पर हरी-हरी झाड़ियां थीं जिनपर खिले फूल अपनी छटा दिखा रहे थे।

अंजू धीरे-धीरे बढ़ती वहां तक चली गई और एक गुलाब का फूल तोड़कर उन्मादी-सी अपने जूड़े में लगाने लगी। सहसा उसके शरीर में एक सिहरन-सी दौड़ गई। एक छाया दबे पांव आकर उसके पीछे खड़ी हो गई। उसने पलटकर देखा, सामने कमल खड़ा था। यह देखते ही उसके हाथ-पांव कांप उठे और वह फूल जूड़े में शोभा देने की बजाय धरती पर आ गिरा। उसने निगाहें नीची कर लीं।

कमल ने झुककर वह फूल उठा लिया और उसे उंगलियों में नचाते हुए उसकी ओर देखने लगा। यह मुड़कर फिर उस झरने को देखने लगी।

कमल चुपके से तनिक और सट गया और दबी आवाज मे बोला-''फूल को जूड़े में लगाते-लगाते फेंक क्यों दिया?''

''नहीं तो, यों ही देख रही थी।''

''कि बालों में कैसा लगता है?''

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