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उपन्यास >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


''यह झरना कितना सौभाग्यशाली है!''

''वह कैसे?''

''सदियों से बहता जा रहा है। अपने हृदय की भड़ास निडर और बेझिझक दुनिया-भर को सुनाए जा रहा है।''

''हां पूनम! जितना इसके भाग्य पर गर्व होता है उतना ही इस झील को देखकर दुख भी होता है।''

''वह क्यों?''

''इसकी गहराइयां न जाने कब से तूफान के थपड़ों को सहती आ रही हैं लेकिन मौन साधे हुए हैं। इनमें जो भी लहर उठती है वह इसका भेद उछालने के बजाय और पर्दा डाल देती है।''

''इंसान की जिंदगी भी तो कभी-कभी ऐसी ही गहराइयों में जा छिपती है कमल बाबू!''

''ठीक कहती हो। थोड़ी देर पहले जब तुम उन लड़कियों के साथ चंचलता और अठखेलियों पर उतर आई थी तो मुझे तुम्हारे जीवन का वह अतीत याद आ गया था जो इस झरने के समान था।''

''और आज?'' वह थरथरा उठी।

''आज तो इस झील की तरह है-शांत और गहरा। इस नीले और गम्भीर धरातल के नीचे राम जाने कामनाओं के कितने तूफान मचल रहे हैं!''

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