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उपन्यास >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


वह अपनी खामोशी के भार को अधिक न उठा सकी। दबी आवाज में बोली-''वह सहारा तो कब का टूट गया। अव तो केवल स्मृतियां शेष हैं।''

''एक बात कहूं, बुरा तो नहीं मानोगी?''

''ऊंह।''

''प्रेम की उन स्मृतियों को सदा के लिए दिल से निकाल दो।''

''कमल बाबू!''

''हां पूनम! अब वह प्यार मैं तुम्हें दूंगा।''

ऐसी बात की आशा होने पर भी वह यह सुनकर कांप उठी। उसका चेहरा सहसा पीला पड़ गया। हाथ-पाव से ठंडे पसीने छूटने लगे।

सहसा शालिनी की आवाज ने दोनों को चौंका दिया। वह उन्हें तलाश करती हुई वहां तक आ गई थी। अंजना उसे देखते ही वहां से चल पड़ी। उसके मन में बैठा हुआ चोर उसे डराने लगा।

ज्योंही उसने कदम बढ़ाए, कमल ने उसे पुकारकर रोक लिया। बोला-''मैं तुम्हारे जवाब का इंतजार करूंगा पूनम!''

उसने कोई उत्तर नहीं दिया और संभलकर शालिनी के सामने आ गई। वह सबके लिए चाय तैयार करके उनकी राह देख रही थी।

जब सब लोग चाय पी रहे थे तो कमल अंजना के चेहरे की गम्भीरता का अध्ययन कर रहा था।

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