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उपन्यास >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


उसने वह खत पूरा कर दिया। बार-बार उसे पढ़ा और उसे कमल तक पहुंचाने का ढंग सोचने लगी। यह पत्र कल उसके भाग्य का फैसला करने वाला था।

अगले दिन सवेरे-सवेरे ही बाबूजी का बुलावा आ गया। वह जल्दी-जल्दी कपड़े पहनकर उनके शयन-कक्ष में जा पहुंची। उनके पैर छुए और हाथ बांधे बांदी की तरह खड़ी हो गई। उस समय वे सुबह का नाश्ता कर रहे थे।

यह देखकर वह हड़बड़ाकर दबी आवाज में बोली-''आज उठने में देर हो गई बाबूजी!''

''अरे तो क्या हुआ? हां, तुम्हारी सास की चिट्ठी आई है तुम्हारे नाम।'' यह कहकर उन्होंने अंजना की ओर एक लिफाफा बढ़ा दिया।

अंजना ने घबराई हुई नजरों से उस लिफाफे की ओर देखा और कांपती हुई उंगलियों से उसे थाम लिया। वह लौटने लगी तो बाबूजी ने उसे पढ़ने के लिए कहा। अंजना रुक गई और लिफाफा खोलकर चुपचाप खत पढ़ने लगी।

''क्या लिखा है शेखर की मां ने?'' वे कुछ देर के बाद पूछ बैठे।

''राज़ी-खुशी की चिट्ठी है। अपनी सेहत का ख्याल रखने को लिखा है। दस-बारह दिन और लगेंगे वहां।''

''इसीलिए मैं उसे बाहर नहीं भेजता बहू! जहां जाती है, जाकर बैठ जाती है। घर का कोई ख्याल नहीं रहता।''

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